कुन्द - कुन्द प्रवचन प्रसारण संस्थान

Welcome To

Kund Kund Pravachan Prasaran Sansthan

ABOUT US

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using ‘Content here, content here’, making it look like readable English. Many desktop publishing packages and web page editors now use Lorem Ipsum as their default model text.

  • Chidayatan is a holy place which inspires the individuals to introspect and feel the everlasting peace at the very inner most conscience. It is that utmost sacred place, which motivates one to be introvert in realizing one’s own soul.
  • There are many variations of passages of Lorem Ipsum available, but the majority have suffered alteration in some form, by injected humour, or randomised words which don’t look even slightly believable.

our News & Events

1914 translation by H. Rackham

Demystifying Machine Learning: A Beginner’s Guide to Understanding Key...

1914 translation by H. Rackham 1

Demystifying Machine Learning: A Beginner’s Guide to Understanding Key...

1914 translation by H. Rackham 3

Demystifying Machine Learning: A Beginner’s Guide to Understanding Key...

Our Gallery

our Lectures

ओ चिन्मय ! - एक संबोधन,जिनवाणी माता का- ठीक वैसे ही जैसे कोई माता अपने बालक को बुलाती है,स्नेह से उसकी ग़लतिया बताकर उसे सही मार्गदर्शन देती है, ओ चिन्मय कहकर , जिनवाणी प्रत्येक उस ज्ञान स्वरूपी चेतन को आवाज़ देकर बुला रही है जो मिट्टी की ममता से ग्रसित है । 
बाबूजी की कलम से निकला हर शब्द महा मोह पर वज्रपात है। 
KKPPS ये कृति को प्रस्तुत करके गौरवान्वित है 🙏
Vismay 
​⁠ 
Singing ​⁠ ​⁠@nikitajhanjhari316 
Direction ​⁠ ​⁠@gyatajhanjhari6248 
Music - ​⁠ Jimmy Desai (7heartz studio)
Video by ​- Dada art (akash jain) 


ओ चिन्मय ! - 

विस्मय होता रे तेरे उन विश्वासों पर 
जिनकी कोई धरती, कोई गगन नहीं है 

मृग मरीचि को रहे तुम्हारे प्राण समर्पित
 जिसमें सलिल नहीं है ठहरे हो उस तट पर 
मिट्टी में ही रहा अहं जिसका कल्पों से 
रत्नराशि उसको कैसे देगा रत्नाकर ?
छलनाओं से छला गया हो बुद्धि - कोष जो
उसको पैदा करके वसुधा बांझ रही है 

तुमने उगता सूरज रोजाना देखा है 
वह यौवना भी देखा जिसको झांक न पाये 
किन्तु सान्ध्य की अन्तिम श्वांसों में सच बोलो 
तुम सूरज का चेहरा तक पहचान न पाये 
जीवन का अवलम्ब बनाया उनको तुमने 
जिनका अपना ही कोई अवलम्ब नहीं है । 

शम्पाओं की तप्त - परिधि में खूब तपे हो 
और खपे हो इन्द्रभवन की मधुशाला में ।
क्रीतदास तुम सदा रहे हो रुपावलि के 
तुम्हें सुहाई सदा विषय की विष- कन्यायें 
अरे रुप के लोलुप ! इतना समझ न पाये 
इस बस्ती में तेरो कोई रुप नहीं है ।


अरे ! पाप की मदमाती काली रातों में 
तुम बेहोश रहे मद पी-पीकर जहरीले 
और पुंय के मधुर दास्य की धवल निशा में 
तूने अपना रूप निहारा ओ गर्वीले 
गर्म और ठण्डी श्वासें ये पाप पुण्य की 
अरे ! मृत्यु की अगवानी है, अमन नहीं है 


मिट्टी से ही सदा रहे हैं रिश्ते तेरे
 चिर अनन्त मिट्टी ही तेरी साध रही है 
तेरे त्याग-तपस्या सब मिट्टी पर ठहरे 
पुण्य पाप का आकर्षण सब मिट्टी ही है 
ओ चिन्मय ! मिट्टी के दावेदार रहे हो 
मिट्टी की ममता छोटा अपराध नहीं है 


रे ! मिट्टी के जड अणुओं की शक्ति अपरिमित 
अणुभर भी यदि स्खलन चित्त में अणु पर होता 
सह नहिं पाता मिट्टी का कण इस अनीति को 
जटिल आणविक बन्धन तत्क्षण निर्मित होता 
पीडाओं की संतति चलती रहती है यों 
क्योकि निरन्तर प्रज्ञा अणु में व्यस्त रही है 

प्रलय सृष्टि से पार शान्त - एकान्त - विजन में 
अरे ! देह में ही विदेह चिन्मय अमि - घट रे 
किन्तु मृत्यु के कृत्रिम - तन्तु कल्पना बुनती 
आत्मतत्त्व तो सब सन्दभों में अक्षय रे
हिम शैलों पर हमने रवि को तपते देखा 
पर हिम के शीतल अन्तस् में तपन नहीं है 


अन्धकार में क्रन्दन करता कोई बोला 
“अरे ! अँधेरा निर्दय मुझको निगल गया रे”
किन्तु किसी के करुण - स्पर्श ने तभी पुकारा
 " बोल रहे हो, फिर कहते तम निगल गया रे" 
अरे ! आत्म-विस्मृति के तम की धन- परतों में 
यों चिन्मय मणि - दीप प्रदीप्त निरन्तर ही है ..

अरे विश्व तो जड - चेतन की अकृत नगरी 
सब स्वतन्त्र क्रीडा करते अपने सदनों में 
यहाँ नहीं अवकाश अतिक्रमण का किंचित् भी अतिक्रमण का यत्न चीखता है नरकों में वीतराग दर्शन का यह अन्तस्तल छू लो
संसृति के दारुण कष्टों का अन्त यहीं है ..


पैठो, पैठो अतल शून्य के तल में पैठो 
मदिर सुरबि बहती है अगणित शक्ति सुमन की 
वहाँ पराये का कोई भी देश नहीं है 
सबकी सब है सिर्फ अरे ! अपनों की बस्ती 
तम के परिकर का उस तल को स्पर्श नहीं रे 
अरे ! चिरन्तन चित्-प्रकाश का भवन वही है..

विस्मय होता रे …
#vismay
#chinmay

#jainism #jainbhajan #jain #mumukshu #yugaljisamaysaar #yugalji #samaysar #songadh #kanjiswami #jinshasan #जैन #जैनभजन #
 #मुनि #जिनवाणी #jinwani #अरिहंत #jainbhajan #jinshasan #jinwani #kanjiswami #mumukshu #samaysar #songadh #yugalji #yugaljisamaysaar #अरिहं

ओ चिन्मय ! - एक संबोधन,जिनवाणी माता का- ठीक वैसे ही जैसे कोई माता अपने बालक को बुलाती है,स्नेह से उसकी ग़लतिया बताकर उसे सही मार्गदर्शन देती है, ओ चिन्मय कहकर , जिनवाणी प्रत्येक उस ज्ञान स्वरूपी चेतन को आवाज़ देकर बुला रही है जो मिट्टी की ममता से ग्रसित है ।
बाबूजी की कलम से निकला हर शब्द महा मोह पर वज्रपात है।
KKPPS ये कृति को प्रस्तुत करके गौरवान्वित है 🙏
Vismay
​⁠
Singing ​⁠ ​⁠@nikitajhanjhari316
Direction ​⁠ ​⁠@gyatajhanjhari6248
Music - ​⁠ Jimmy Desai (7heartz studio)
Video by ​- Dada art (akash jain)


ओ चिन्मय ! -

विस्मय होता रे तेरे उन विश्वासों पर
जिनकी कोई धरती, कोई गगन नहीं है

मृग मरीचि को रहे तुम्हारे प्राण समर्पित
जिसमें सलिल नहीं है ठहरे हो उस तट पर
मिट्टी में ही रहा अहं जिसका कल्पों से
रत्नराशि उसको कैसे देगा रत्नाकर ?
छलनाओं से छला गया हो बुद्धि - कोष जो
उसको पैदा करके वसुधा बांझ रही है

तुमने उगता सूरज रोजाना देखा है
वह यौवना भी देखा जिसको झांक न पाये
किन्तु सान्ध्य की अन्तिम श्वांसों में सच बोलो
तुम सूरज का चेहरा तक पहचान न पाये
जीवन का अवलम्ब बनाया उनको तुमने
जिनका अपना ही कोई अवलम्ब नहीं है ।

शम्पाओं की तप्त - परिधि में खूब तपे हो
और खपे हो इन्द्रभवन की मधुशाला में ।
क्रीतदास तुम सदा रहे हो रुपावलि के
तुम्हें सुहाई सदा विषय की विष- कन्यायें
अरे रुप के लोलुप ! इतना समझ न पाये
इस बस्ती में तेरो कोई रुप नहीं है ।


अरे ! पाप की मदमाती काली रातों में
तुम बेहोश रहे मद पी-पीकर जहरीले
और पुंय के मधुर दास्य की धवल निशा में
तूने अपना रूप निहारा ओ गर्वीले
गर्म और ठण्डी श्वासें ये पाप पुण्य की
अरे ! मृत्यु की अगवानी है, अमन नहीं है


मिट्टी से ही सदा रहे हैं रिश्ते तेरे
चिर अनन्त मिट्टी ही तेरी साध रही है
तेरे त्याग-तपस्या सब मिट्टी पर ठहरे
पुण्य पाप का आकर्षण सब मिट्टी ही है
ओ चिन्मय ! मिट्टी के दावेदार रहे हो
मिट्टी की ममता छोटा अपराध नहीं है


रे ! मिट्टी के जड अणुओं की शक्ति अपरिमित
अणुभर भी यदि स्खलन चित्त में अणु पर होता
सह नहिं पाता मिट्टी का कण इस अनीति को
जटिल आणविक बन्धन तत्क्षण निर्मित होता
पीडाओं की संतति चलती रहती है यों
क्योकि निरन्तर प्रज्ञा अणु में व्यस्त रही है

प्रलय सृष्टि से पार शान्त - एकान्त - विजन में
अरे ! देह में ही विदेह चिन्मय अमि - घट रे
किन्तु मृत्यु के कृत्रिम - तन्तु कल्पना बुनती
आत्मतत्त्व तो सब सन्दभों में अक्षय रे
हिम शैलों पर हमने रवि को तपते देखा
पर हिम के शीतल अन्तस् में तपन नहीं है


अन्धकार में क्रन्दन करता कोई बोला
“अरे ! अँधेरा निर्दय मुझको निगल गया रे”
किन्तु किसी के करुण - स्पर्श ने तभी पुकारा
" बोल रहे हो, फिर कहते तम निगल गया रे"
अरे ! आत्म-विस्मृति के तम की धन- परतों में
यों चिन्मय मणि - दीप प्रदीप्त निरन्तर ही है ..

अरे विश्व तो जड - चेतन की अकृत नगरी
सब स्वतन्त्र क्रीडा करते अपने सदनों में
यहाँ नहीं अवकाश अतिक्रमण का किंचित् भी अतिक्रमण का यत्न चीखता है नरकों में वीतराग दर्शन का यह अन्तस्तल छू लो
संसृति के दारुण कष्टों का अन्त यहीं है ..


पैठो, पैठो अतल शून्य के तल में पैठो
मदिर सुरबि बहती है अगणित शक्ति सुमन की
वहाँ पराये का कोई भी देश नहीं है
सबकी सब है सिर्फ अरे ! अपनों की बस्ती
तम के परिकर का उस तल को स्पर्श नहीं रे
अरे ! चिरन्तन चित्-प्रकाश का भवन वही है..

विस्मय होता रे …
#vismay
#chinmay

#jainism #jainbhajan #jain #mumukshu #yugaljisamaysaar #yugalji #samaysar #songadh #kanjiswami #jinshasan #जैन #जैनभजन #
#मुनि #जिनवाणी #jinwani #अरिहंत #jainbhajan #jinshasan #jinwani #kanjiswami #mumukshu #samaysar #songadh #yugalji #yugaljisamaysaar #अरिहं

YouTube Video kwwtHn652zg

ओ चिन्मय ! । आद. बाबु जुगल किशोर जी ‘युगल’ कृत । स्वर- श्रीमती निकिता झांझरी,सूरत | O Chinmay

KKPPS August 13, 2024 4:46 pm

28- द्रव्यकर्म व भावकर्म का स्वरूप- मोक्षमार्गप्रकाशक

KKPPS August 5, 2024 7:44 pm

9- परमार्थ वचनिका

KKPPS June 27, 2024 4:38 pm

This error message is only visible to WordPress admins

Error: No feed found with the ID 1.

Go to the All Feeds page and select an ID from an existing feed.